इंटरनेट डेस्क। शबनम अली (38) आजादी के बाद पहली महिला होगी जिसे फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा। फांसी का नाम सुनते ही रूह कांप जाती है। सोचो एक महिला यहां फांसी के फंदे पर स्वयं नहीं लटकेगी उसे लटकाया जाएगा। फिर जल्लाद उसे झूलने पर मजबूर कर देगा। क्योंकि जुर्म भी शबनम अली ने कम नहीं किया। अपने ही परिवार के सात सदस्यों को कुल्हाडी से काटकर मार डाला था। वो भी प्रेस संबंधों में बाधा आने पर। छठी तक पढ़े सलीम के साथ बेपनाह मोहब्बत करती थी शबनम। और इश्क ऐसा सवार हुआ कि अपनों को ही नहीं पहचाना और उन्हें मौत के घाट उतार दिया।
लेकिन सवाल अभी भी यही है कि क्या आजादी के बाद जिस महिला को फांसी होने जा रही है क्या उसे टाला नहीं जा सकता है…? जुर्म तो किया है लेकिन उसे सरकार जीवन पर्यंत कैद में भी तो तब्दील कर सकती है। पहले भी 1998 में एक महिला की फांसी को उसके बच्चे के जन्म के बाद टाला गया था। तो इस मामले में सरकार क्यों एक महिला को फांसी के फंदे पर झूलने दे रही है?
यहां सवाल इसलिये भी है क्योंकि आज गुरुवार को यूपी के अमरोहा में बामनखेड़ी कांड की दोषी शबनम की फांसी की संभावनाओं के बीच उनके बेटे ताज ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से अपनी मां की फांसी की सजा माफ करने की गुहार लगाई है।
ताज ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि मेरी राष्ट्रपति जी से अपील है कि मेरी मां को फांसी न दें। मैं उनसे बहुत प्यार करता हूं। मैं उन्हें खोना नहीं चाहता। नन्हीं सी उम्र में मां का साया उठ जाएगा इस बच्चे के सिर से। केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को ही इस मुद्दे पर सोचना चाहिये कि क्या आजाद भारत और बदलते भारत में एक महिला को फांसी के फंदे पर चढ़ाना कितना सही होगा?
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